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रुद्राक्ष के बारे में बुनियादी जानकारी
रुद्राक्ष एक पेड़ के सूखे बीज होते हैं, जो दक्षिण पूर्व एशिया के चुनिंदा स्थानों में उगते हैं - इसे वनस्पति विज्ञान में एलोकार्पस गनीट्रस के रूप में जाना जाता है। इसे "शिव के आँसू" भी कहा जाता है और भगवान शिव से जुड़ी कई कहानियाँ हैं जो इसके मूल के बारे में बताती हैं। रुद्राक्ष शब्द "रुद्र" और "अक्ष" से बना है। "रुद्र" शिव का नाम है और "अक्ष" का अर्थ है आँसू।
रुद्राक्ष शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने में बहुत सहायक है। आध्यात्मिक साधकों के लिए, यह आध्यात्मिक विकास को बढ़ाने में मदद करता है। दुनिया भर में, कई शारीरिक, मानसिक और मनोदैहिक रोगों के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है
किसी भी लिंग, सांस्कृतिक, जातीय, भौगोलिक या धार्मिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति रुद्राक्ष पहन सकता है। हर मानसिक और शारीरिक स्थिति में, और जीवन के किसी भी चरण में लोग रुद्राक्ष पहन सकते हैं। यह बच्चों, छात्रों, बुज़ुर्गों और बीमार लोगों द्वारा पहना जा सकता है, और उन्हें कई लाभ मिल सकते हैं। कृपया नीचे दिया गया प्रश्न नंबर 5 देखें।
हमारे हर साइज़ के सभी पंचमुखी रुद्राक्षों में एक जैसे गुण, प्रभाव और लाभ हैं। आप अपनी पसंद के आधार पर इन सात साइज़ में से कोई भी चुन सकते हैं। छोटे दुर्लभ हैं, इसलिए उनकी कीमत में अंतर है
हमारे द्वारा दिए गए रुद्राक्ष को सावधानी से चुना जाता है, उनकी गुणवत्ता की जाँच की जाती है, और उन्हें प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है। हर तरह के रुद्राक्ष के लाभ नीचे दिए गए हैं:
- - पंचमुखी: ये पांच मुख वाले रुद्राक्ष हैं, जिन्हें 14 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति द्वारा पहना जा सकता है। यह भीतरी स्वतंत्रता और शुद्धता लाने मदद करता है
- - द्विमुखी: यह दो-मुखी रुद्राक्ष विवाहित व्यक्तियों के लिए है। यह वैवाहिक रिश्तों में मददगार है, और पति-पत्नी दोनों के द्वारा पहना जाना चाहिए
- - शनमुखी: ये छह-मुखी रुद्राक्ष हैं यह रुद्राक्ष 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए है। यह उचित शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक होता है
- - गौरी शंकर: ये दो जुड़े हुए मनकों की तरह दिखता है, और 14 साल से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति द्वारा पहना जा सकता है। यह समृद्धि और इडा व पिंगला नाड़ियों (ऊर्जा का मार्ग) के संतुलन में सहायक है। यह सातों चक्रों को सक्रिय करता है
नए रुद्राक्ष मनकों को कंडीशन करने के लिए, उन्हें घी में 24 घंटे के लिए डुबोएं और फिर उन्हें चौबीस घंटों के लिए पूर्ण वसा (फैट) वाले दूध में भिगो दें। फिर उन्हें पानी से धोएं और मनकों को एक साफ कपड़े से पोंछ लें। उन्हें साबुन या किसी सफाई करने वाली सामग्री से न धोएं। इस कंडीशनिंग के कारण, रुद्राक्ष का रंग बदल सकता है। यह पूरी तरह से सामान्य है क्योंकि ये प्राकृतिक मनके हैं। यह भी सामान्य है कि कंडीशनिंग के दौरान धागे का रंग भी कुछ फीका पड़ जाए। नीचे बताए तरीके के अनुसार हर छह महीने में रुद्राक्ष की कंडीशनिंग करनी चाहिए
रुद्राक्षों की कंडीशनिंग हर छह महीने में की जानी चाहिए। रुद्राक्ष माला की कंडीशनिंग करने के लिए मनकों को घी में 24 घंटे के लिए डुबोएं और फिर उन्हें 24 घंटे के लिए पूर्ण वसा (फैट) वाले दूध में भिगो दें। फिर उन्हें पानी से धोएं और मनकों को एक साफ कपड़े से पोंछ लें। उन्हें साबुन या किसी सफाई करने वाली सामग्री से न धोएं
माला को हर समय पहना जा सकता है। आप इसे तब भी पहन सकते हैं जब आप सोते हैं या स्नान करते हैं। यदि आप ठंडे पानी से स्नान करते हैं और किसी भी रासायनिक साबुन का उपयोग नहीं कर रहे हैं, तो यह विशेष रूप से अच्छा है कि रुद्राक्ष के ऊपर से पानी बहे और फिर आपके शरीर पर बहे। लेकिन अगर आप रासायनिक साबुन और गर्म पानी का उपयोग कर रहे हैं, तो यह कच्चा हो जाएगा और कुछ समय बाद टूट जाएगा, इसलिए ऐसे समय में इसे न पहनना सबसे अच्छा होगा
इसके बारे में और जानें
नहीं। परंपरागत रूप से, मनकों की संख्या 108 है, और उनके अलावा एक रुद्राक्ष बिंदु का काम करता है। यह सलाह दी जाती है कि एक वयस्क को 84 से कम मनकों वाली माला नहीं पहननी चाहिए, साथ ही बिंदु भी होना चाहिए। 84 से बड़ी कोई भी संख्या ठीक है। यह संख्या रुद्राक्ष के साइज़ पर निर्भर करती है।
हर साइज़ के सभी पंचमुखी रुद्राक्षों में एक जैसे गुण, प्रभाव और लाभ हैं। आप अपनी पसंद के आधार पर इन सात साइज़ में से कोई भी चुन सकते हैं। छोटे मनके दुर्लभ हैं, इसलिए उनकी कीमत में अंतर है।
नहीं, आपको अपने रुद्राक्ष को किसी और के साथ साझा नहीं करना चाहिए, क्योंकि रुद्राक्ष पहनने वाले के हिसाब से ढल जाते हैं।
रुद्राक्ष को रेशमी कपड़े में रखना सबसे अच्छा होता है, या फिर इसे तांबे के बर्तन में रखना चाहिए। याद रखें, तांबा दूध के उत्पादों को ऑक्सीडाइज़ कर सकता है इसलिए आपको रुद्राक्ष की कंडीशनिंग करते समय तांबे के बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
पंचमुखी माला का बिंदु वाला हिस्सा गर्दन के किसी विशेष भाग पर रखना ज़रूरी नहीं है - जब आप चलते हैं, सोते हैं, अपनी साधना करते हैं, तो आपका रुद्राक्ष अलग-अलग जगह चला जाएगा। अपनी छाती के बीच में बिंदु को ले आना सबसे अच्छा है, लेकिन जब आप फिर से चलना शुरू करेंगे, तो बिंदु भी हिलने डुलने लगेगा। यह ठीक है।
रुद्राक्ष में स्वाभाविक रूप से एक निश्चित गुण होता है, इसलिए उन्हें शरीर पर इस तरह से पहनना महत्वपूर्ण है कि रुद्राक्ष के साथ आदर और परवाह का व्यवहार हो। रुद्राक्ष को गहनों की तरह नहीं पहनना चाहिए और उतारकर अलग नहीं रख देना चाहिए। जब कोई व्यक्ति रुद्राक्ष पहनने का फैसला करता है, तो यह उनके शरीर के एक हिस्से की तरह हो जाना चाहिए।
अगर कोई अपने रुद्राक्ष को लम्बे समय तक न पहनने का फैसला करता है, तो उसे एक रेशमी कपड़े में रखा जाना चाहिए – उसे पूजा कक्ष में रखना सबसे अच्छा होगा।
कुछ ऐसी स्थितियां हैं जो रुद्राक्ष के लिए अनुकूल नहीं हैं। उदाहरण के लिए, अगर रुद्राक्ष सीमेंट के फर्श पर 48 दिन के मंडल या उससे ज़्यादा समय के लिए रखे जाते हैं तो उनका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। कंडीशनिंग इस प्रक्रिया को पलटने में मदद नहीं करेगी। ऐसी स्थिति में यदि संभव हो तो रुद्राक्ष को मिट्टी में दबा देना चाहिए, या फिर एक नदी या कुएं जैसे जलाशय में डाल देना चाहिए।
रुद्राक्ष का रख-रखाव
ररुद्राक्ष माला से टूटे हुए मनकों को हटा दिया जाना चाहिए, क्योंकि उनकी ऊर्जा बदल जाएगी और शायद वह पहनने वाले के लिए अनुकूल न हो। अलग-अलग मनकों को तब तक बदलने की ज़रूरत नहीं है, जब तक कि माला के मनकों की कुल संख्या 84 हो, और साथ ही एक बिंदु भी हो – यह उन लोगों के लिए है, जो 14 वर्ष या उससे अधिक आयु के हैं। इसके ऊपर कोई भी संख्या उन लोगों के लिए पहनने के लिए ठीक है जो 14 वर्ष या उससे अधिक उम्र के हैं।
टटूटे हुए मनकों को हटाने के लिए, माला को खोला जा सकता है और फिर से बांधा जा सकता है। जब आप उन्हें फिर से बांधते हैं, तो कोई भी मनका बिंदु के रूप में कार्य कर सकता है – यह ज़रूरी नहीं कि उसी मनके का उपयोग करना है, जो पहले बिंदु था। 14 वर्ष से कम की आयु वाले व्यक्तियों को केवल शनमुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।
रुद्राक्ष के सभी लाभों का अनुभव करने के लिए सभी मनकों को एक दूसरे से छूना चाहिए। इससे माला में ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह महत्वपूर्ण है कि माला को बहुत कसकर न बांधें वरना मनके एक-दूसरे से सटकर दब जाएंगे और वो चटक सकते हैं। सबसे अच्छा यह होगा कि माला को ज़्यादा कसकर न बांधा जाए, और सभी मनके एक दूसरे को छू रहे हों।
चूंकि रुद्राक्ष एक अनूठी संरचना वाले प्राकृतिक बीज हैं, इसलिए उन्हें प्राकृतिक बर्तनों में रखना सबसे अच्छा है। कंडीशनिंग करते समय, मिट्टी, कांच या लकड़ी के कटोरे का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है। वैकल्पिक रूप से, सोने या चांदी के कटोरे का उपयोग किया जा सकता है, यदि वह उपलब्ध हों। कंडीशनिंग करते समय, यह महत्वपूर्ण है कि तांबे के कटोरे का उपयोग न करें, क्योंकि घी और दूध तांबे के साथ मिलकर प्रतिक्रिया कर सकते हैं। लेकिन कंडीशनिंग न करते समय, रुद्राक्ष को तांबे में रखना ठीक रहता है। रुद्राक्ष को स्टोर या कंडीशन करने के लिए प्लास्टिक का उपयोग करना उचित नहीं है, क्योंकि प्लास्टिक प्रतिक्रिया कर सकता है और उससे हानिकारक पदार्थ रिस सकते हैं।
रुद्राक्ष पहनते समय रेशम के धागे का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा होता है - इसकी गुणवत्ता और ताकत के कारण यह उपयोग करने के लिए सबसे अच्छा प्राकृतिक विकल्प है। अगर यह सुनिश्चित किया जाए कि इस प्रक्रिया में कोई बीज नहीं टूटता और कोई नुकसान नहीं होता, तो पतली सोने या चांदी की चेन का उपयोग भी किया जा सकता है।
सद्गुरु: परंपरागत रूप से, मालाओं का काम हमेशा उन लोगों द्वारा किया जाता था, जिन्होंने इसे अपने जीवन में एक पवित्र कर्तव्य के रूप में अपनाया था। पीढ़ियों तक, उन्होंने केवल यही किया। उन्होंने इससे अपनी आजीविका कमाई, लेकिन बुनियादी तौर पर इसे लोगों को भेंट करना एक पवित्र कर्तव्य की तरह था। पर जब मांग बहुत अधिक हो गई, तो यह बिज़नेस बन गया। आज भारत में, एक और बीज है जिसे बद्राक्ष कहा जाता है। यह एक जहरीला बीज है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार और उस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मिलता है। देखने पर, ये दोनों बीज एक से दिखते हैं। आप अंतर नहीं पता लगा सकते। अगर आप इसे अपने हाथ में लेते हैं और केवल यदि आप संवेदनशील हैं, तो आपको अंतर पता चल जाएगा। उसे शरीर पर नहीं पहना जाना चाहिए, लेकिन इन्हें कई स्थानों पर प्रामाणिक रुद्राक्ष मनकों के रूप में बेचा जा रहा है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने माला को विश्वसनीय स्रोत से ही प्राप्त करें।
एक गौरी शंकर रुद्राक्ष में एक धातु का लूप होता है, जिसका उद्देश्य पंचमुखी माला के अंत में बांधना है या किसी रेशम के धागे या सोने या चांदी की चेन से आसानी से बांधना है। गौरी शंकर को पंचमुखी माला से जोड़ने पर, बिंदु को उसकी जगह पर बने रहने देना महत्वपूर्ण है; गौरी शंकर को बिंदु के नीचे एक मनके के रूप में जोड़ा जा सकता है। बिंदु महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि माला में ऊर्जा का प्रवाह चक्रीय नहीं है। यदि यह चक्रीय हो जाता है, तो इससे कुछ लोगों को चक्कर आ सकता है।
अनुकूलित करना
कंडीशनिंग रुद्राक्ष के जीवनकाल को लम्बा करने में मदद करने के लिए है, ताकि उन्हें टूटने से रोका जा सके। हर 6 महीने पर घी और दूध में डुबोना, और हर 1 से 2 साल में तिल के तेल में डुबोना, रुद्राक्ष की अखंडता के लिए फायदेमंद है। कंडीशनिंग से रुद्राक्ष "फिर से ऊर्जावान" नहीं होते। रुद्राक्ष में स्वाभाविक रूप से ही एक विशेष गुण होता है।
कंडीशनिंग के बाद रुद्राक्ष, थोड़ा फिसलने वाला बन सकता है और इसमें से घी और दूध की गंध आ सकती है। अंतिम कंडीशनिंग के रूप में रुद्राक्ष पर विभूति लगाई जा सकती है, यह किसी भी तरह की अतिरिक्त चिपचिपाहट को हटाने में सहायता करेगी। ऐसा करने के लिए, अपनी हथेली में कुछ विभूति लें और उसमें रुद्राक्ष को रखकर हल्के से घुमाएं। ऐसा करने से पहले रुद्राक्ष को पानी से नहीं धोना चाहिए, न ही साबुन से धोना चाहिए। दूध से निकालने के बाद रुद्राक्ष को सीधे विभूति में डालना चाहिए।
जब आप घी में 24 घंटे के लिए रुद्राक्ष की कंडीशनिंग करते हैं, तो उस घी का इस्तेमाल पौधे के भोजन के रूप में या दीपक के तेल के रूप में किया जा सकता है, या फिर उसे रुद्राक्ष की अगली कंडीशनिंग के लिए रखा जा सकता है। बचे हुए घी का इस्तेमाल खाना पकाने के लिए नहीं करना चाहिए।
खरीदने के बाद, जब पहली बार रुद्राक्ष की कंडीशनिंग की जाती है, तब मनकों से कुछ रिसाव हो सकता है। रंग अलग-अलग हो सकता है लेकिन आमतौर पर यह रिसाव पीला या काला होता है। यह एक सुरक्षात्मक प्रक्रिया के कारण होता है, जिसमें रुद्राक्ष के मनकों को किसानों से प्राप्त करने के बाद, उन्हें ढंकने के लिए मिट्टी का उपयोग किया जाता है। जब मिट्टी को रुद्राक्ष पर लगाया जाता है, तो इससे यह सुनिश्चित होता है, कि वह बीज अपनी मूल दशा में बना रहता है - ठीक वैसा जैसा वह पेड़ से आया था। रंग में अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि वह मिट्टी कहाँ से ली गई है।
रुद्राक्ष का रंग सोखे हुए पदार्थों के कारण समय के साथ गहरा हो जाता है। ऐसा कंडीशनिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले घी, दूध और तिल के तेल, और आपके शरीर के प्राकृतिक तेल और पसीने को सोखने के कारण होता है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है; इसका साधना या योग अभ्यासों से कोई संबंध नहीं है।